Pope Francis Farewell: नहीं चाहा शाही सम्मान, जानिए क्या थी उनकी आखिरी इच्छा

Pope Francis Farewell: वेटिकन सिटी से एक बड़ी खबर निकलकर सामने आई है। ईसाई धर्म के सर्वोच्च नेता, पोप फ्रांसिस के अंतिम संस्कार की तैयारियां शुरू हो गई हैं। लेकिन इस बार परंपराएं वैसी नहीं रहेंगी जैसी सदियों से चली आ रही थीं। पोप फ्रांसिस ने अपने जीवन में ही यह फैसला कर लिया था कि उनका अंतिम संस्कार बिल्कुल साधारण तरीके से किया जाए। उन्होंने कहा था कि उन्हें किसी भी तरह की शाही विदाई नहीं चाहिए। वो नहीं चाहते थे कि उन्हें पोप के रूप में विदाई दी जाए, बल्कि बस एक साधारण पादरी की तरह उन्हें विदा किया जाए।

इसलिए अब जब उनके निधन की पुष्टि हो चुकी है, तो वेटिकन भी उन्हीं की इच्छा के मुताबिक सारी तैयारियां कर रहा है। 9 दिन तक चलने वाला परंपरागत शोक, जिसे ‘नोवेन्डिएल’ कहा जाता है, उसी के साथ उनका अंतिम संस्कार होगा। पर इस बार उस ‘राजसी माहौल’ की झलक नहीं मिलेगी जो पहले के पोप्स के अंतिम संस्कार में देखने को मिलती थी।

Pope Francis Farewell: नहीं चाहिए तीन परत वाला ताबूत, न कोई प्लेटफॉर्म

अब तक परंपरा रही है कि पोप के शव को तीन परत वाले ताबूत में रखा जाता है। लकड़ी, सीसा और फिर एक मजबूत बाहरी परत वाला ताबूत तैयार किया जाता है, जो काफी भव्य और भारी होता है। लेकिन पोप फ्रांसिस ने पहले ही कह दिया था कि उन्हें इसकी जरूरत नहीं है। वे चाहते थे कि एक साधारण लकड़ी के ताबूत में उन्हें दफन किया जाए।

सिर्फ इतना ही नहीं, उन्होंने ये भी इच्छा जताई थी कि उनका पार्थिव शरीर किसी ऊंचे मंच पर ना रखा जाए। वो नहीं चाहते थे कि लोगों के बीच उनका अंतिम दर्शन किसी दिखावे की तरह हो। वो सादगी में ही विश्वास रखते थे और उसी का पालन करना चाहते थे।

इसके अलावा, पुराने जमाने में परंपरा थी कि पोप के शरीर से कुछ अंग जैसे दिल, लीवर, तिल्ली आदि निकालकर अलग-अलग सुरक्षित रखे जाते थे। यह एक तरह से उनकी ‘धार्मिक विरासत’ मानी जाती थी। लेकिन पोप फ्रांसिस ने इस परंपरा को भी खत्म करने का फैसला किया था।

सांता मारिया मैगीगोर में होगा अंतिम विश्राम

पोप फ्रांसिस ने अपनी अंतिम विश्रामस्थली भी खुद तय कर ली थी। उन्होंने वेटिकन या किसी भव्य स्मारक की जगह सांता मारिया मैगीगोर बेसिलिका को चुना, जो रोम का एक ऐतिहासिक और पवित्र चर्च है। ये वही जगह है जहां पोप फ्रांसिस अक्सर प्रार्थना के लिए जाया करते थे। उनका इस चर्च से गहरा जुड़ाव था। यही वजह है कि उन्होंने इसे अपने अंतिम विश्राम के लिए चुना।

इस चर्च की खास बात यह है कि यहां आम लोग भी आसानी से पहुंच सकते हैं। इससे यह साफ होता है कि पोप फ्रांसिस हमेशा लोगों के करीब रहना चाहते थे — चाहे वो ज़िंदा रहें या फिर मृत्यु के बाद।

सदियों पुरानी परंपराएं तोड़ दी गईं

पोप फ्रांसिस ने सिर्फ एक साधारण अंतिम संस्कार की इच्छा ही नहीं जताई, बल्कि कई सदियों पुरानी परंपराएं भी तोड़ीं। 16वीं से 19वीं सदी के बीच पोप के शरीर से अंग निकालना आम बात थी। फिर उन्हें संगमरमर के बर्तनों में रखकर विशेष स्थानों पर संरक्षित किया जाता था। आज भी रोम के एक चर्च में 22 पोप के अंग सुरक्षित हैं।

लेकिन पोप फ्रांसिस ने यह सब स्वीकार नहीं किया। उन्होंने साफ शब्दों में कह दिया कि शरीर से किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ न की जाए। उनके इस फैसले को लेकर बहुतों ने सराहना भी की क्योंकि यह आज की सोच के काफी करीब है — जहां इंसान की सादगी और स्वाभाविक विदाई को प्राथमिकता दी जाती है।

आम जनता को अंतिम दर्शन की अनुमति

पोप फ्रांसिस का पार्थिव शरीर वेटिकन के सबसे प्रमुख स्थल सेंट पीटर्स बेसिलिका में रखा जाएगा। यहां पर दुनिया भर से आने वाले लोग और श्रद्धालु उन्हें अंतिम बार श्रद्धांजलि दे सकेंगे।

यहां न कोई बड़ी लाइटिंग होगी, न तामझाम — बस एक गरिमामय माहौल में लोग पोप फ्रांसिस को याद करेंगे। ये विदाई एक युग का अंत होगी, लेकिन साथ ही ये उस इंसान को श्रद्धांजलि भी होगी, जिसने अपने हर काम और फैसले से यह जताया कि इंसानियत, विनम्रता और सेवा सबसे बड़ी चीज़ है।

पोप फ्रांसिस का यह फैसला आने वाली पीढ़ियों को एक मजबूत संदेश देता है — कि असली सम्मान दिखावे में नहीं, बल्कि सच्चे जीवन और साधारण विदाई में छुपा होता है।

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