O.P. Nayyar और Lata Mangeshkar दोनों ही हिंदी फिल्म संगीत के दिग्गज नाम हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि ओ.पी. नैयर ने एक फिल्म के बाद लता मंगेशकर के साथ कभी काम नहीं किया? हिंदी सिनेमा के सबसे महंगे संगीतकारों में से एक होने के बावजूद, नैयर ने अपनी पूरी करियर में लता को नजरअंदाज किया। इसकी वजह एक पुरानी घटना थी, जिसने दोनों के बीच ऐसी खटास पैदा कर दी कि उन्होंने फिर कभी साथ काम नहीं किया। आइए जानते हैं ओ.पी. नैयर के सफर, उनके अनोखे संगीत स्टाइल और लता मंगेशकर से जुड़े विवाद के बारे में।
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O.P. Nayyar: बिना शास्त्रीय शिक्षा के बने बॉलीवुड के हाईएस्ट Paid संगीतकार
O.P. Nayyar, जिन्हें पूरी दुनिया ओ.पी. नैयर के नाम से जानती है, ऐसे संगीतकार थे जिन्होंने बिना किसी औपचारिक संगीत शिक्षा के अपनी अलग पहचान बनाई। उनका संगीत सुनने में जितना सरल लगता था, उसमें उतनी ही गहराई थी। 16 जनवरी 1926 को लाहौर में जन्मे नैयर का मन शुरू से ही संगीत में रमता था, लेकिन परिवार चाहता था कि वे पढ़ाई करें। बावजूद इसके, 17 साल की उम्र में उन्होंने एचएमवी के लिए ‘कबीर वाणी’ कंपोज की, जो नाकाम रही। पर नैयर रुके नहीं और ‘प्रीतम आन मिलो’ नाम से एक प्राइवेट एल्बम बनाया, जिसने उन्हें पहली पहचान दी।
देश के बंटवारे के बाद उन्हें लाहौर छोड़कर पटियाला आना पड़ा। वहां संगीत शिक्षक के रूप में काम किया, लेकिन असली सपना फिल्मों में संगीत देने का था। आखिरकार, संघर्षों के बाद वे मुंबई पहुंचे और 1952 में आई फिल्म आसमान से बॉलीवुड में अपनी पहचान बनाई।
O.P. Nayyar और Lata Mangeshkar का विवाद
फिल्म आसमान नैयर के लिए म्यूजिक इंडस्ट्री में एंट्री की सीढ़ी बनी, लेकिन इसी फिल्म ने उनके और लता मंगेशकर के बीच दूरी भी बना दी। लता मंगेशकर उस समय अनारकली, नागिन, और बैजू बावरा जैसी फिल्मों से सफलता की ऊंचाइयों पर थीं। नैयर ने आसमान के लिए लता से गाने के लिए कहा, लेकिन जब रिकॉर्डिंग का समय आया, तो लता स्टूडियो नहीं पहुंचीं। बाद में लता ने बताया कि उनकी नाक में दिक्कत थी और डॉक्टर ने आराम करने की सलाह दी थी।
नैयर ने इसे गैर-जिम्मेदाराना समझा और नाराज हो गए। उन्होंने साफ कह दिया कि जो समय पर नहीं पहुंच सकता, वह उनके लिए महत्वपूर्ण नहीं है। लता ने समझाने की कोशिश की, लेकिन नैयर टस से मस नहीं हुए। इस पर लता ने भी कह दिया कि जो संगीतकार संवेदनशील नहीं है, वह उनके लिए नहीं गा सकतीं। इसके बाद फिल्म का गाना “मोरी निंदिया चुराए गयो” राजकुमारी से गवाया गया और लता-नैयर की जोड़ी वहीं खत्म हो गई।
हमेशा अपनी शर्तों पर काम करने वाले संगीतकार

ओ.पी. नैयर अपनी शर्तों पर काम करने वाले संगीतकार थे। जब लता के साथ रिश्ता टूटा, तो उन्होंने शमशाद बेगम, गीता दत्त और बाद में आशा भोसले से गाने गवाने शुरू कर दिए। आशा की आवाज उनके पंजाबी लोकसंगीत से प्रभावित धुनों के लिए परफेक्ट बैठी।
नैयर और आशा की नजदीकियां तब बढ़ीं जब उन्होंने फिल्म नया दौर के लिए साथ काम किया। उड़े जब-जब जुल्फें तेरी और रेशमी सलवार कुर्ता जाली का जैसे गाने सुपरहिट हुए और दोनों के बीच का प्रोफेशनल रिश्ता मजबूत हो गया। हालांकि, गीता दत्त और शमशाद बेगम, जिन्होंने नैयर के मुश्किल समय में उनका साथ दिया था, धीरे-धीरे दूर होती गईं।
नैयर का संगीत और बॉलीवुड पर प्रभाव
ओ.पी. नैयर के संगीत ने शम्मी कपूर और हेलेन जैसे सितारों की छवि बनाने में अहम भूमिका निभाई। फिल्म तुमसा नहीं देखा के गानों ने शम्मी कपूर को “जंपिंग जैक” की पहचान दी, वहीं मेरा नाम चिन चिन चू जैसे गाने ने हेलेन को बॉलीवुड में स्थापित कर दिया।
उनका संगीत सिर्फ गानों तक सीमित नहीं था, बल्कि फिल्मों के पूरे माहौल को जीवंत बना देता था। उनकी धुनों में जो खास तालमेल था, उसने उन्हें बाकी संगीतकारों से अलग बना दिया। नैयर को घुड़सवारी और घोड़ों से खास लगाव था, और उनकी कई धुनों में घोड़ों की टापों जैसी रिदम देखने को मिलती है। फिल्म नया दौर में उनके गाने इसी तरह के रिदम पर आधारित थे, जिसने दर्शकों के दिलों में जगह बना ली।
Lata Mangeshkar से दूर, लेकिन संगीत की दुनिया में अडिग
Lata Mangeshkar के बिना भी नैयर ने अपनी एक अलग पहचान कायम रखी। उन्होंने आशा भोसले को एक नई आवाज दी और उनके करियर को नई ऊंचाइयां दीं। आशा की आवाज नैयर की धुनों में इतनी फिट बैठी कि दोनों की जोड़ी बॉलीवुड में सबसे सफल मानी जाने लगी। इशारों इशारों में दिल लेने वाले और आओ हुजूर तुमको जैसे गाने आज भी सुने जाते हैं।
हालांकि, आशा भोसले और नैयर का रिश्ता भी ज्यादा लंबा नहीं चला। समय के साथ उनके बीच भी मनमुटाव आ गया, और 1974 में दोनों ने अलग होने का फैसला किया। इसके बाद नैयर का करियर धीरे-धीरे ढलान पर आने लगा।
O.P. Nayyar का संगीत आज भी हैं Fans के दिलों में
भले ही O.P. Nayyar का करियर धीरे-धीरे कम हो गया, लेकिन उनके गानों की लोकप्रियता कभी कम नहीं हुई। उनकी धुनें आज भी संगीत प्रेमियों को पुराने दौर की याद दिलाती हैं। उनकी धुनों में जो मासूमियत और सरलता थी, वह आज के संगीत में कम ही देखने को मिलती है।
2007 में जब ओ.पी. नैयर का निधन हुआ, तो उनके अंतिम समय में उनके परिवार से ज्यादा उनके पुराने दोस्त और संगीत प्रेमी ही उनके साथ थे। उनका जीवन इस बात का उदाहरण है कि एक कलाकार अपनी शर्तों पर जी सकता है, भले ही उसे किन मुश्किलों का सामना करना पड़े।
ओ.पी. नैयर और लता मंगेशकर के बीच जो दूरियां बनीं, वे कभी खत्म नहीं हुईं। लेकिन इससे दोनों की प्रतिभा पर कोई असर नहीं पड़ा। लता अपनी आवाज के जादू से संगीत की दुनिया पर राज करती रहीं, और नैयर अपनी धुनों से लोगों को झूमने पर मजबूर करते रहे। उनका संगीत आज भी जिंदा है और हमेशा रहेगा।
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