8 साल में किसानों से ज़्यादा फायदे में बीमा कंपनियां, महाराष्ट्र में 45% ज़्यादा crop insurance प्रीमियम वसूली

Crop insurance: महाराष्ट्र, जो अक्सर सूखा, बेमौसम बारिश और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं का सामना करता रहा है, वहां किसानों की हालत तो लगातार बिगड़ती जा रही है, लेकिन बीमा कंपनियों की कमाई साल दर साल बढ़ती ही जा रही है. फसल बीमा योजना के आंकड़े खुद इस सच्चाई को बयां कर रहे हैं.

बीते 8 सालों में यानी साल 2016-17 से लेकर 2023-24 तक, किसानों से crop insurance के नाम पर करीब ₹52,969 करोड़ रुपये का प्रीमियम वसूला गया. लेकिन जब बात मुआवज़े की आई तो किसानों को केवल ₹36,350 करोड़ ही मिले. यानी बीमा कंपनियों ने किसानों से जितना प्रीमियम लिया, उसका बड़ा हिस्सा उनके पास ही रह गया और किसानों तक पैसा पहुंचने की दर काफी कम रही.

कुल मिलाकर बीमा कंपनियों को किसानों से 45% ज्यादा फायदा हुआ. सरकार द्वारा बुलाई गई एक हालिया समीक्षा बैठक में ये चौंकाने वाला आंकड़ा सामने आया है, जिसने किसान संगठनों और विशेषज्ञों को सोचने पर मजबूर कर दिया है.

12.8 करोड़ किसानों ने लिया बीमा, लेकिन आधे ही पहुंचे मुआवज़े तक

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, इस 8 साल की अवधि में crop insurance योजना के तहत महाराष्ट्र में कुल 12.8 करोड़ किसानों ने आवेदन किया. लेकिन इनमें से केवल 6.2 करोड़ किसानों को ही बीमा कंपनियों की तरफ से मुआवज़ा मिल पाया. यानी आधे से ज्यादा किसानों को या तो नुकसान की भरपाई नहीं मिली या फिर उनकी फाइलें तकनीकी कारणों या प्रक्रिया की जटिलताओं में उलझकर रिजेक्ट कर दी गईं.

यह स्थिति तब है जब किसानों की फसलें कई बार पूरी तरह बर्बाद हो गईं, खेतों में पानी भर गया, ओले गिरे या फिर बेमौसम बारिश ने खड़ी फसलों को नुकसान पहुंचाया. इसके बावजूद भी crop insurance का लाभ केवल सीमित किसानों तक ही पहुंच पाया, जो कि योजना की सफलता पर सवाल खड़े करता है.

प्राकृतिक आपदाएं भी झेली, लेकिन अच्छी फसल वाले साल भी आए

प्रशासनिक अधिकारियों का कहना है कि पिछले कुछ वर्षों में महाराष्ट्र ने कई गंभीर प्राकृतिक आपदाओं का सामना किया है. इसमें सूखा, बाढ़, ओलावृष्टि और बेमौसम बारिश जैसी घटनाएं शामिल हैं. हालांकि कुछ सालों में राज्य में अच्छी बारिश भी हुई और फसलों की पैदावार अच्छी रही.

बीमा कंपनियों की दलील है कि जब नुकसान कम होता है, तो स्वाभाविक है कि मुआवज़ा भी कम दिया जाता है. लेकिन सवाल ये है कि अगर अच्छे सालों में प्रीमियम बढ़कर वसूला जाता है और खराब सालों में मुआवज़ा नहीं दिया जाता, तो किसानों को इस बीमा योजना से असली फायदा कब मिलेगा?

किसानों में नाराज़गी, सवालों के घेरे में crop insurance योजना

जैसे ही ये आंकड़े सार्वजनिक हुए, किसान संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं में नाराज़गी फैल गई है. किसानों का कहना है कि जब उनके खेतों में फसलें बर्बाद हो जाती हैं और उन्हें कुछ नहीं मिलता, तब बीमा योजना का असली मकसद क्या है?

कई किसान नेताओं का यह भी आरोप है कि बीमा कंपनियां सरकार के पैसे से अपना बिज़नेस चला रही हैं. प्रीमियम में सरकारी हिस्सा भी होता है, लेकिन मुआवज़े के मामले में कंपनियां नियमों और तकनीकी प्रक्रियाओं का हवाला देकर बच निकलती हैं.

गांव के स्तर पर किसानों की शिकायतें हैं कि उन्हें सही जानकारी नहीं मिलती, सर्वे देरी से होते हैं, और नुकसान का सही आकलन नहीं हो पाता. कई बार फसल की कटाई के बाद नुकसान होता है, लेकिन बीमा केवल कटाई से पहले के नुकसान को कवर करता है.

कहां जा रही है बीमा योजना की दिशा?

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) का मकसद था किसानों को प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले फसल नुकसान से आर्थिक राहत देना. लेकिन इन आंकड़ों से साफ हो रहा है कि crop insurance योजना की ज़मीन पर हालत उम्मीद से काफी अलग है.

बीमा कंपनियों का फायदा लगातार बढ़ रहा है, जबकि किसान योजना के असली लाभार्थी होकर भी मुआवज़े के लिए संघर्ष कर रहे हैं. इसमें पारदर्शिता की कमी, जानकारी का अभाव और जटिल प्रक्रिया जैसी कई समस्याएं नजर आती हैं, जो योजना को प्रभावहीन बना रही हैं.

विशेषज्ञों का मानना है कि यदि सरकार को इस योजना को सफल बनाना है तो बीमा क्लेम प्रक्रिया को पारदर्शी, डिजिटल और समयबद्ध बनाना होगा. गांव स्तर पर ट्रेनिंग और जागरूकता अभियान चलाकर किसानों को उनका अधिकार दिलाना होगा.

क्या कहती है सरकार?

हाल ही में हुई समीक्षा बैठक में इस विषय को गंभीरता से लिया गया है. कुछ अधिकारियों का कहना है कि सरकार बीमा कंपनियों की जिम्मेदारी तय करने के लिए एक निगरानी तंत्र विकसित करने की दिशा में काम कर रही है. साथ ही मुआवज़े की प्रक्रिया को तेज और सरल बनाने के भी प्रयास किए जा रहे हैं.

इसके अलावा केंद्र सरकार crop insurance योजना के तहत किसानों को ज्यादा फायदा दिलाने के लिए नई गाइडलाइंस और डिजिटल रिपोर्टिंग सिस्टम पर काम कर रही है, ताकि नुकसान की सही रिपोर्टिंग हो और समय पर मुआवज़ा मिल सके.

सरल शब्दों में कहें तो बीमा योजना से किसानों को जितना लाभ मिलना चाहिए था, उतना नहीं मिला. बीमा कंपनियां ज़रूर फायदे में रहीं, लेकिन किसानों के हिस्से में संघर्ष और इंतज़ार आया. सरकार को इस असंतुलन को जल्द से जल्द सुधारना होगा, वरना crop insurance किसानों के लिए एक और बोझ बनकर रह जाएगी.

इन्हें भी पढें!