पीटर नवारो का ब्राह्मण पर दिया विवादित बयान: हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के पूर्व व्यापार सलाहकार पीटर नवारो द्वारा दिए गए एक बयान ने भारत में राजनीतिक और सामाजिक हलचल मचा दी है। नवारो ने न केवल भारत की रूस से तेल खरीद पर सवाल उठाए, बल्कि एक समुदाय विशेष — ब्राह्मण — पर मुनाफाखोरी के गंभीर आरोप लगाकर विवाद को और भड़का दिया। भारत ने इस टिप्पणी को न केवल “गलत और भ्रामक” करार दिया है, बल्कि इसे जिम्मेदारी से परे और खतरनाक भी बताया है।
विवाद की शुरुआत: क्या कहा पीटर नवारो ने ?
फॉक्स न्यूज़ को दिए एक इंटरव्यू में पीटर नवारो ने आरोप लगाया कि भारत रूस से सस्ता तेल खरीदकर उसे यूरोप, अफ्रीका और एशिया में ऊंचे दामों पर बेचकर भारी मुनाफा कमा रहा है। उन्होंने दावा किया कि रूस-यूक्रेन युद्ध से पहले भारत का रूसी तेल से कोई खास रिश्ता नहीं था, लेकिन अब भारत “रूस के लिए एक धोबीघर” बन गया है, जिससे युद्ध को अप्रत्यक्ष रूप से बढ़ावा मिल रहा है।
इस बयान से भी बड़ा विवाद तब पैदा हुआ जब उन्होंने यह विवादास्पद टिप्पणी कर दी कि “ब्राह्मण भारतीय लोग आम जनता की कीमत पर मुनाफाखोरी कर रहे हैं।” उनके अनुसार, यह वर्ग अपने फायदे के लिए राष्ट्रीय और वैश्विक नीतियों को प्रभावित कर रहा है, और इसे रोका जाना चाहिए। यह एक जातिगत टिप्पणी थी जिसने न केवल भारतीय समाज को आहत किया, बल्कि अमेरिकी-भारतीय कूटनीति को भी प्रभावित किया।

भारत का सख्त जवाब
भारत सरकार ने नवारो के इन बयानों पर तीखी प्रतिक्रिया दी। विदेश मंत्रालय (MEA) के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने एक प्रेस वार्ता में कहा,
“हमने पीटर नवारो द्वारा दिए गए गलत और भ्रामक बयान देखे हैं और हम उन्हें पूरी तरह खारिज करते हैं।”
उन्होंने आगे कहा कि भारत और अमेरिका के रिश्ते लोकतांत्रिक मूल्यों, साझा हितों और मजबूत जन-संपर्कों पर आधारित हैं। ऐसे समय में जब दोनों देश 2+2 मंत्रिस्तरीय संवाद, संयुक्त सैन्य अभ्यास और रणनीतिक सहयोग में भाग ले रहे हैं, इस तरह के बयान इन संबंधों को कमजोर करने की कोशिश हैं।
रणधीर जायसवाल ने इस बात पर ज़ोर दिया कि भारत अमेरिका के साथ अपनी साझेदारी को और मज़बूत करने के लिए प्रतिबद्ध है और दोनों देशों के बीच निरंतर संवाद जारी है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि इस तरह के गैर-जिम्मेदाराना बयान भारत के खिलाफ पश्चिमी राजनीतिक गलियारों में मौजूद पूर्वाग्रहों को दर्शाते हैं, जिनका कोई आधार नहीं है।
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जाति आधारित टिप्पणी क्यों है खतरनाक?
नवारो की “ब्राह्मण” वाली टिप्पणी न केवल एक राजनीतिक बयान था, बल्कि यह भारत के सामाजिक ताने-बाने में जाति आधारित संवेदनशीलता को भी छेड़ने वाला था। भारत में जाति एक जटिल और संवेदनशील मुद्दा है, और इस पर विदेशी नेताओं या सलाहकारों द्वारा की गई गैर-जिम्मेदाराना टिप्पणी सामाजिक विद्वेष को बढ़ावा दे सकती है।
भारत में हर समुदाय, चाहे वह ब्राह्मण हो या कोई और, राष्ट्र निर्माण और आर्थिक विकास में अपनी भूमिका निभाता है। एक विशेष जाति को मुनाफाखोरी का प्रतीक बताना न केवल अनुचित है, बल्कि यह एक संकीर्ण और भेदभावपूर्ण सोच को दर्शाता है।
अमेरिकी राजनीति में भारत विरोध?
पीटर नवारो ट्रंप प्रशासन में एक प्रभावशाली चेहरा रहे हैं, और उनके विचार अक्सर कट्टर राष्ट्रवाद और संरक्षणवादी आर्थिक नीतियों से प्रेरित रहे हैं। भारत पर उनके इस तरह के हमले को कई विश्लेषक अमेरिका के चुनावी माहौल से भी जोड़कर देख रहे हैं, जहां विदेश नीति को अक्सर घरेलू राजनीतिक एजेंडे के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
नवारो ने इससे पहले भी भारत की रूस से तेल खरीद को लेकर भारत सरकार की आलोचना की थी और यहां तक कि रूस-यूक्रेन युद्ध को “मोदी का युद्ध” कहकर संबोधित किया था। यह एक ऐसा आरोप है जिसे अंतरराष्ट्रीय मंच पर गंभीरता से नहीं लिया गया, लेकिन यह दर्शाता है कि कुछ अमेरिकी राजनीतिज्ञ भारत की स्वतंत्र विदेश नीति से नाखुश हैं।
“पीटर नवारो का ब्राह्मण पर दिया विवादित बयान” सिर्फ एक व्यक्ति की राय नहीं है, यह एक व्यापक राजनीतिक सोच और पूर्वाग्रह को उजागर करता है। भारत ने अपने पक्ष को स्पष्ट रूप से रखा है और इस तरह की टिप्पणियों को सिरे से खारिज कर दिया है।
भारत और अमेरिका के बीच रिश्ते आज जिस स्तर पर हैं, वहां इस तरह की बयानबाजी न केवल दुर्भाग्यपूर्ण है, बल्कि खतरनाक भी हो सकती है। यह समय है जब दोनों देशों को एक-दूसरे के संवेदनशील मुद्दों को समझते हुए परस्पर सम्मान के साथ आगे बढ़ना चाहिए, न कि राजनीतिक लाभ के लिए समाज को बांटने वाली भाषा का सहारा लेना चाहिए।